जिस समय आर्य हिन्दू जाति सैंकड़ों वर्ष की गुलामी के बाद अनेकानेक कुरीतियों को अपना कर अवैदिक मत मतान्तरों के समक्ष धराशायी हो जाने के कगार पर खड़ी थी ऐसे समय में महर्षि देव दयानंद ने वैदिक धर्म की दुन्दुभि बजाकर भारत का इतिहास पलट कर रख दिया | अपने अंत को सामने देख रही पददलित आर्य हिन्दू जाति के नए सूर्य का उदय हुआ | जिन कुप्रथाओं को अब परमसनातनी भी हेय और त्याज्य समझते है, उस समय उन के भी विरुद्ध शब्द उठाने का बहुत ही कम उदार पुरुषों को साहस होता था। उन के उन्मूलन में सप्रयत्न और स्वयम् आदर्श बनकर दिखलाने की तो बात ही दूसरी है परन्तु आदित्य ब्रह्मचारी के प्रखर प्रताप ने आज हम को उस दिन का दर्शन करा दिया है, जब कि आर्य हिन्दू जाति की जड़ को खोखला करने वाली इन कुप्रथाओं को किसी को किसी कन्दरा में भी शरण नहीं मिलेगी। वेदों की पुनर्स्थापना, अवैदिक मत मतान्तरों की तार्किक समीक्षा, स्त्री उद्धार, दलित उद्धार, बाल विवाह उन्मूलन, विधवा विवाह, शुद्धि आन्दोलन, जन्मना जाति उन्मूलन, गुरुकुल परम्परा, शास्त्रार्थ परम्परा, हिंदी भाषा प्रचार, स्वराज्य और स्वदेशी जैसे सैंकड़ों उपकार महर्षि देव दयानंद अपने छोटे से कार्य काल में कर गए जिनके समक्ष अन्य कोई महापुरुष दूर दूर तक खड़ा नहीं दीखता| परन्तु जिन पाखंडियों के पाखंड के किले महर्षि देव दयानंद ने अपने तर्कों से ध्वस्त कर दिए थे वे लगातार सत्य के इस सूर्य को अस्त करने के षड्यंत्र करने में लगे हुए थे | 9 वर्ष की अवधि में 44 बार महर्षि देव दयानंद की हत्या का षड्यंत्र किया गया और अंततः 44वां षड्यंत्र प्राण घातक सिद्ध हुआ | दीपावली के दिन महर्षि देव दयानंद हम सबको छोड़ कर गए | यह इतनी भयंकर क्षति थी कि आज भी आर्य हिन्दू जाति को साल रही है | यदि महर्षि देव दयानंद कुछ समय और जीवित रह जाते तो पूरे भारतवर्ष का शोधन कर आर्यावर्त की स्थापना कर चुके होते | लेकिन महर्षि देव दयानंद ने जो वेद की ज्योति पुनर्प्रज्वलित की थी वह अब विश्व के कोने कोने में पहूँच कर ज्वाला का रूप धारण कर चुकी है | आधुनिक भारत का जो रूप आज दिख रहा है उसके निर्माण का श्रेय केवल और केवल महर्षि देव दयानंद को जाता है | आईये उस महामानव के 136वें निर्वाण दिवस पर एकत्र हो उनके दिखाए मार्ग पर चलने के संकल्प को पुनः दोहरायें |
on 11/11/2019
जिस समय आर्य हिन्दू जाति सैंकड़ों वर्ष की गुलामी के बाद अनेकानेक कुरीतियों को अपना कर अवैदिक मत मतान्तरों के समक्ष धराशायी हो जाने के कगार पर खड़ी थी ऐसे समय में महर्षि देव दयानंद ने वैदिक धर्म की दुन्दुभि बजाकर भारत का इतिहास पलट कर रख दिया | अपने अंत को सामने देख रही पददलित आर्य हिन्दू जाति के नए सूर्य का उदय हुआ | जिन कुप्रथाओं को अब परमसनातनी भी हेय और त्याज्य समझते है, उस समय उन के भी विरुद्ध शब्द उठाने का बहुत ही कम उदार पुरुषों को साहस होता था। उन के उन्मूलन में सप्रयत्न और स्वयम् आदर्श बनकर दिखलाने की तो बात ही दूसरी है परन्तु आदित्य ब्रह्मचारी के प्रखर प्रताप ने आज हम को उस दिन का दर्शन करा दिया है, जब कि आर्य हिन्दू जाति की जड़ को खोखला करने वाली इन कुप्रथाओं को किसी को किसी कन्दरा में भी शरण नहीं मिलेगी। वेदों की पुनर्स्थापना, अवैदिक मत मतान्तरों की तार्किक समीक्षा, स्त्री उद्धार, दलित उद्धार, बाल विवाह उन्मूलन, विधवा विवाह, शुद्धि आन्दोलन, जन्मना जाति उन्मूलन, गुरुकुल परम्परा, शास्त्रार्थ परम्परा, हिंदी भाषा प्रचार, स्वराज्य और स्वदेशी जैसे सैंकड़ों उपकार महर्षि देव दयानंद अपने छोटे से कार्य काल में कर गए जिनके समक्ष अन्य कोई महापुरुष दूर दूर तक खड़ा नहीं दीखता| परन्तु जिन पाखंडियों के पाखंड के किले महर्षि देव दयानंद ने अपने तर्कों से ध्वस्त कर दिए थे वे लगातार सत्य के इस सूर्य को अस्त करने के षड्यंत्र करने में लगे हुए थे | 9 वर्ष की अवधि में 44 बार महर्षि देव दयानंद की हत्या का षड्यंत्र किया गया और अंततः 44वां षड्यंत्र प्राण घातक सिद्ध हुआ | दीपावली के दिन महर्षि देव दयानंद हम सबको छोड़ कर गए | यह इतनी भयंकर क्षति थी कि आज भी आर्य हिन्दू जाति को साल रही है | यदि महर्षि देव दयानंद कुछ समय और जीवित रह जाते तो पूरे भारतवर्ष का शोधन कर आर्यावर्त की स्थापना कर चुके होते | लेकिन महर्षि देव दयानंद ने जो वेद की ज्योति पुनर्प्रज्वलित की थी वह अब विश्व के कोने कोने में पहूँच कर ज्वाला का रूप धारण कर चुकी है | आधुनिक भारत का जो रूप आज दिख रहा है उसके निर्माण का श्रेय केवल और केवल महर्षि देव दयानंद को जाता है | आईये उस महामानव के 136वें निर्वाण दिवस पर एकत्र हो उनके दिखाए मार्ग पर चलने के संकल्प को पुनः दोहरायें |